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hartalika teej vrat katha पार्वती की तपस्या और शिव का आशीर्वाद: हरतालिका तीज व्रत की कथा

hartalika teej vrat kathaहरतालिका तीज हिंदू धर्म की प्रमुख तीजों में से एक है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों में उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित और अविवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है, जो अपने सौभाग्य, पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए इस व्रत को रखती हैं। हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन की कथा से जुड़ा हुआ है, जो भक्ति, समर्पण और प्रेम की अद्वितीय मिसाल है।

hartalika teej vrat katha

व्रत की उत्पत्ति और महत्व


हरतालिका तीज का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है— “हरत” और “आलिका”। “हरत” का अर्थ है हरण या अपहरण और “आलिका” का अर्थ है सखी या सहेली। इस व्रत का नाम इस प्रकार रखा गया क्योंकि इस कथा के अनुसार माता पार्वती की सखी ने उनका हरण कर लिया था ताकि उनका विवाह भगवान शिव से हो सके। इस व्रत के पीछे की कथा उस गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाती है जो माता पार्वती ने भगवान शिव के प्रति दिखाया।

हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं दिनभर जल तक ग्रहण नहीं करतीं और पूरी रात जागरण करती हैं। इसे अखंड सौभाग्य का व्रत माना जाता है, जिसमें पार्वती जी के समान तपस्या और समर्पण करने वाली महिलाओं को अपने पति का प्रेम और दीर्घायु प्राप्त होता है।

व्रत कथा: पार्वती जी की कठोर तपस्या

hartalika teej vrat katha
portrait of a young beautiful indian woman with sari


पार्वती जी भगवान शिव से अत्यधिक प्रेम करती थीं और उन्हें पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। लेकिन शिव जी उस समय विवाह की भावना से दूर थे और अपने ध्यान में लीन रहते थे। अपने पिता हिमालय के घर में रहते हुए, पार्वती जी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने का निश्चय किया और इस उद्देश्य से कठोर तपस्या करने लगीं।

पार्वती जी ने तपस्या का कठिन मार्ग अपनाया, जिसमें उन्होंने कई वर्षों तक बिना अन्न और जल के रहकर शिव जी की आराधना की। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उनके शरीर पर मिट्टी की परतें जम गईं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने धैर्य और समर्पण को नहीं छोड़ा। वे अपने संकल्प पर अडिग रहीं और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने अंत:करण से उनकी आराधना करती रहीं। पार्वती जी की यह तपस्या उस दिव्य प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, जिसे किसी भी स्त्री का अपने पति के प्रति होना चाहिए।

सखी का हरण


जब पार्वती जी अपने पिता हिमालय के महल में थीं, तो उनके पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से कराने का प्रस्ताव रखा। लेकिन पार्वती जी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे केवल भगवान शिव को ही पति रूप में चाहती हैं। पिता की इच्छा का सम्मान करने के बावजूद, पार्वती जी ने भगवान विष्णु से विवाह करने का विचार त्याग दिया।

इस स्थिति को देखकर, पार्वती जी की सखी ने एक योजना बनाई। उन्होंने पार्वती जी का हरण कर उन्हें एक घने वन में ले जाकर छुपा दिया। यहां पार्वती जी ने अपनी तपस्या को और भी कठोरता से जारी रखा। उनकी तपस्या का यह चरण अत्यधिक कठिन था, लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार का विचलन नहीं किया।

भगवान शिव की प्रसन्नता


पार्वती जी की यह तपस्या भगवान शिव तक पहुंची। उनकी भक्ति, समर्पण और प्रेम को देखकर भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए। उन्होंने पार्वती जी के सामने प्रकट होकर उन्हें वरदान दिया कि वे ही उनके पति होंगे। शिव जी ने पार्वती जी की तपस्या को स्वीकार किया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे हमेशा उनके साथ रहेंगे। इसके बाद दोनों का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ, जिसे सभी देवताओं ने आशीर्वाद दिया।

यह कथा स्त्रियों को यह संदेश देती है कि सच्चा प्रेम, समर्पण और विश्वास किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। पार्वती जी की कठोर तपस्या और भगवान शिव का आशीर्वाद यह बताता है कि समर्पण और भक्ति से सब कुछ संभव हो सकता है।

हरतालिका तीज व्रत की विधि;


हरतालिका तीज व्रत का पालन करने वाली स्त्रियां इस दिन को अत्यंत श्रद्धा और नियम के साथ मनाती हैं। व्रत के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर लेती हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण करती हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं।

पूजा के समय महिलाएं विशेष रूप से “हरतालिका तीज व्रत कथा” का पाठ करती हैं, जिसमें माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनाई जाती है। इस कथा के माध्यम से महिलाएं माता पार्वती के कठोर तप और भगवान शिव के प्रति उनके प्रेम को याद करती हैं।

पूजा के बाद महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं, जिसमें वे पूरे दिन और रात बिना अन्न और जल के रहती हैं। रात में जागरण किया जाता है, जिसमें भजन-कीर्तन और धार्मिक चर्चाएं की जाती हैं। अगले दिन, सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है और महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं।

व्रत का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व

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हरतालिका तीज व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महिलाओं के जीवन में आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने जीवनसाथी के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को प्रकट करती हैं।

इसके साथ ही, यह व्रत समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनकी भूमिका को भी रेखांकित करता है। स्त्रियों का यह व्रत उनके परिवार और समाज में उनके स्थान को और भी सशक्त बनाता है। समाज में इस व्रत को धारण करने वाली स्त्रियां उस आदर्श पत्नी का प्रतीक मानी जाती हैं, जो अपने पति के प्रति समर्पित होती है और उनके दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करती है।

हरतालिका तीज व्रत स्त्रियों को यह प्रेरणा देता है कि प्रेम और समर्पण से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। माता पार्वती का तप और भगवान शिव के प्रति उनका समर्पण इस बात का प्रमाण है कि सच्चे प्रेम में शक्ति और धैर्य होता है।

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निष्कर्ष


हरतालिका तीज व्रत का महत्व सिर्फ धार्मिक और सामाजिक रूप से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी गहरा है। यह व्रत स्त्रियों को प्रेम, समर्पण और धैर्य का मार्ग दिखाता है। माता पार्वती और भगवान शिव की कथा यह सिखाती है कि कठिनाइयों और संघर्षों का सामना कर सच्चा प्रेम प्राप्त किया जा सकता है।

हरतालिका तीज का व्रत उस दिव्य प्रेम और शक्ति का प्रतीक है, जो हर स्त्री के जीवन में उसे सशक्त बनाता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने जीवनसाथी के प्रति अपने प्रेम और सम्मान को प्रकट करती हैं, और माता पार्वती की तरह अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।

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